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यूपी में घोसी उपचुनाव में होगा I.N.D.I.A. का पहला इम्तेहान?

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लखनऊ: जब सियासी दल 2024 के लोकसभा चुनाव की बिसात बिछाने में लगे हैं, उनके सामने मऊ जिले के घोसी विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव की चुनौती आन पड़ी है। पांच सितंबर को होने वाले मतदान और 8 सितंबर को आने वाले नतीजे का संख्यात्मक प्रभाव तो नगण्य है, लेकिन परसप्शन के लिहाज से इसके मायने बहुत हैं। लोकसभा चुनाव के पहले विपक्षी एका का एक मंच तैयार करने के लिए बने गठबंधन ‘I.N.D.I.A.’ के समायोजन और संभावनाओं की तस्वीर भी इससे खिंचती नजर आ सकती है। इसके नतीजे लोकसभा चुनाव के लिए तय किए जा रहे मुद्दों और जुटाए जा रहे, साथ के लिए भी संकेत के तौर पर देखे जा सकते हैं।घोसी उपचुनाव सपा से विधायक बने दारा सिंह चौहान के इस्तीफा देने के चलते हो रहा है। दारा भाजपा में शामिल हो चुके हैं और पार्टी ने उन्हें फिर इस सीट से उम्मीदवार बना दिया है। दूसरी ओर सपा ने इस सीट से अपने पुराने चेहरे सुधाकर सिंह को उतारा है। चुनाव दारा की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और उनकी प्रासंगिकता से भी जुड़ा है। क्योंकि महज 18 महीने में पार्टी बदलकर वह दूसरी बार घोसी की जनता के सामने कसौटी पर कसे जाने के लिए पहुंच रहे हैं। फिलहाल, यहां लड़ाई सीधे तौर पर भाजपा और सपा में तय है।

क्या बसपा उपचुनाव से रहेगी दूर?

सूत्रों का कहना है कि 2019 में घोसी उपचुनाव में दावेदारी करने वाली बसपा का मन इस बार उपचुनाव से दूर रहने का है। पार्टी लोकसभा चुनावा के पहले किसी और चुनाव में उतरकर नतीजों के आधार पर परसप्शन बनाना-बिगाड़ना नहीं चाहती। दूसरी ओर कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि वह भी उम्मीदवार नहीं उतारेगी।

एका का लिटमस टेस्ट

विपक्षी एकता की कवायद का यह चुनाव लिटमस टेस्ट होगा। भाजपा के लिए खिलाफ राष्ट्रीय गठबंधन बनाए जाने को लेकर हो रहे मंथन और प्रस्तावित ‘I.N.D.I.A.’ में इस समय सपा भी शामिल है और कांग्रेस भी। बसपा फिलहाल भाजपा की अगुआई वाले एनडीए व विपक्षी गठबंधन यूपीए दोनों से दूरी बनाए रखे है। इसे सपा के साथ गठबंधन की संभावनाओं को मजबूत करने का कदम भी माना जा रहा है। वहीं कांग्रेस चुनाव से तो बाहर है, लेकिन सपा को खुला समर्थन देगी इसे लेकर असमंजस की स्थिति है। कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि इस बार फैसला केंद्रीय नेतृत्व करेगा। निर्भर इस पर भी करेगा कि सपा समर्थन मांगती है कि नहीं।

सपा, बसपा दोनों की राह देख रही कांग्रेस!

दूसरी ओर, सपा के सूत्रों की मानें तो पार्टी खुला समर्थन मांगने के पक्ष में नहीं है, क्योंकि वह अब भी साथ के विकल्पों को खुला रखना चाहती है। बिना मांगे समर्थन देकर कांग्रेस भी यूपी में अपनी संभावनाएं बंद नहीं करना चाहती है। पार्टी सपा के साथ बसपा से भी नाता जोड़ने की संभावनाओं को टटोल रही है। इसलिए, घोषित तौर पर साथ या खिलाफ जाकर वह किसी को नाराज करने का खतरा मोल नहीं लेगी। इसलिए, चुनाव में विपक्ष के दलों का रुख बहुत कुछ आगे की भी तस्वीर तय करेगा।

समीकरणों व साथियों की भी परीक्षा

घोसी का सामाजिक समीकरण पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए संभावनाओं से भरा है। यहां सवा चार लाख से अधिक मतदाता हैं। सपा जिस पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) की जमीन पर 2024 में जीत का महल तैयार करना चाहती है, उसकी यहां प्रभावी भागीदारी है। दलित, पिछड़े और मुस्लिमों की कुल संख्या यहां करीब तीन-चौथाई है। हालांकि, पार्टी ने सवर्ण उम्मीदवार दिया है। ऐसे में अखिलेश के पीडीए समीकरण का जमीनी असर भी उपचुनाव में नापा जाएगा। पिछड़ा बिरादरी के वोटरों में लोनिया चौहान और राजभरों की संख्या यहां लगभग 90 हजार बताई जा रही है। दारा खुद लोनिया बिरादरी से आते हैं और राजभरों के बीच सियासत करने वाली सुभासपा अब भाजपा के साथ है। इनकी पकड़ का भी घोसी में इम्तेहान होगा।

पिछले चार चुनावों में यूं थी तस्वीर

2022दारा सिंह चौहान (सपा) : 108430विजय राजभर (भाजपा) : 86, 214वसीम इकबाल (बसपा) : 542482019 (उपचुनाव)विजय राजभर (भाजपा) : 68371सुधाकर (सपा समर्थित) : 66598अब्दुल कय्यूम अंसारी (बसपा) : 50,7752017फागू चौहान (भाजपा) : 88298अब्बास अंसारी (बसपा) : 81295सुधाकर (सपा) : 59,2562012सुधाकर (सपा) : 73562फागू चौहान (बसपा) : 57991मुख्तार अंसारी (कौमी एकता दल) : 44596

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