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नयी दिल्ली: केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर हलफनामे में कहा है कि ‘पीएम केयर्स फंड’ सरकारी निकाय नहीं, बल्कि यह एक चैरिटेबल ट्रस्ट है।
‘पीएम केयर्स फंड’ को सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत लाने की मांग करने को लेकर न्यायालय में दायर एक याचिका के जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय के अवर सचिव प्रदीप श्रीवास्ताव ने हलाफनामे में सरकार का पक्ष रखा।
यह याचिका वकील मयंक गंगवाल ने दायर की है। हलफनामें कहा गया है कि ‘पीएम केयर्स फंड’ केन्द्र सरकार का नहीं है, बल्कि यह एक चैरिटेबल ट्रस्ट है। इस ट्रस्ट को चंदे में प्राप्त धनराशि केन्द्र सरकार की संचित निधि में नहीं जाती है। यही वजह है कि इसे न तो ‘सरकारी प्राधिकार’ और न ही ‘सरकार’ के तौर पर चिह्नित किया जा सकता है।
पीएमओ की ओर से कहा गया है कि ‘पीएम केयर्स फंड’ को आॅनलाइन, बैंक चेक या बैंक डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से चंदा प्राप्त होता है। इसके आय एवं व्यय को लेकर पारदर्शिता बरती जाती है। एक आॅडिटर द्वारा आॅडिट के बाद संबंधित सभी जरूरी विवरण इसकी आधिकारिक वेबसाइट पर डाले जाते हैं।
गौरतलब है कि ‘पीएम केयर्स फंड’ की वेबसाइट पर इस बारे में पहले ही जानकारी दी गई थी कि यह एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट है, लेकिन प्रचार-प्रसार एवं वेबसाइट पर अशोक स्तंभ एवं प्रधानमंत्री की तस्वीरों की वजह से कई बार लोगों को लगता है, यह एक सरकार की संस्था है।
आधिकारिक वेबसाइट में इसके बारे में कहा गया है कि इसे कोविड-19 महामारी जैसी किसी भी तरह की आपातकालीन या संकट की स्थिति से निपटने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ एक समर्पित राष्ट्रीय निधि की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। प्रभावित लोगों को राहत प्रदान करने के लिए ‘आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष (पीएम केयर्स फंड)’ के नाम से एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट बनाया गया है।
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