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आलोक यात्री
कोरोना संकट की दूसरी लहर शुरू होने के बाद से दुनिया भर के अधिकांश लोगों के रोजगार पर खात्मे की तलवार लटक रही है। तमाम क्षेत्रों में रोजगार का संकट दिनोंदिन गहरा रहा है। नौकरीपेशा लोगों से लेकर रोज कमाने-खाने वालों तक की स्थिति डावांडोल होती नजर आ रही है। इस महामारी ने छोटे-बड़े तमाम कारोबारियों और उद्यमियों की कमर तोड़ कर रख दी है। देश का सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग भी इस संकट से अछूता नहीं बचा है।सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमईसी) के आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2019-20 के मुकाबले पिछले वित्त वर्ष के मार्च तक नौकरी खोने वाले लोगों की संख्या 55 लाख से अधिक बनी हुई थी। ऐसे तमाम वेतनभोगी, जिनकी नौकरियां गईं, उनकी संख्या भी एक करोड़ से अधिक है। यह संख्या हर रोज बढ़ रही है। रिपोर्ट के अनुसार रोजगार गंवाने वालों में 60 फीसदी लोग ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। इनमें अधिकांश एमएसएमई सेक्टर यानी सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों से जुड़े हैं।सीएमईसी के आंकड़े बताते हैं कि साल 2021 के फरवरी माह में देश में बेरोजगारी की दर 6.9 फीसदी रही। कोरोना का सबसे अधिक असर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग क्षेत्र पर भी हुआ है। कोरोना की दूसरी लहर के साथ बेरोजगारी दर पुन: तेजी से बढ़नी शुरू हो गई है। 11 मार्च, 2021 को समाप्त सप्ताह में बेरोजगारी दर 7 फीसदी पर थी जो अब बढ़कर 8.6 फीसदी पर पहुंच गई है। बेरोजगारी दर में मौजूदा गिरावट दशार्ती है कि देश में नौकरी के अवसर फिर से तेजी से कम हो रहे हैं।गौरतलब है कि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग देश की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में करीब 29 फीसदी का योगदान देते हैं। विश्लेषकों का अनुमान है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में मंदी की बड़ी वजह वैश्विक स्तर पर कोरोना महामारी का प्रकोप है। आंकड़े बताते हैं कि बेरोजगारी की दर फरवरी, 2021 में बीते 4 माह के मुकाबले सबसे अधिक रही। आंकड़ों के अनुसार फरवरी, 2021 में भारत की बेरोजगारी दर बढ़ कर 7.78 फीसदी हो गई थी, जो अक्तूबर, 2019 के बाद से सबसे अधिक थी। जनवरी, 2021 में यह दर 7.16 फीसदी थी। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर फरवरी 2021 में बढ़कर 7.37 फीसदी हो गई थी, जो जनवरी महीने में 5.97 फीसदी थी। वहीं शहरी क्षेत्रों में यह दर 9.70 फीसदी से घट कर 8.65 फीसदी हो गई।डॉटा कंपनी डन एंड ब्रेडस्ट्रीट ने महामारी के कारण भारत के छोटे उद्योगों के संकट पर प्रकाशित रिपोर्ट में कहा है कि 82 फीसदी छोटे उद्योग धंधों पर महामारी का बुरा असर पड़ा है। सेवा और विनिर्माण क्षेत्र की छोटी कंपनियां सबसे अधिक प्रभावित हुई हैं। सर्वे में कहा गया है कि पिछले एक साल के दौरान भारत महामारी से सबसे बुरी तरह प्रभावित देश के रूप में उभरा है। अब दूसरी लहर के मामले बढ़ने के साथ विभिन्न राज्यों में बंदी और कड़े प्रतिबंध जैसे कदमों का आर्थिकी पर भारी असर पड़ा है। आमदनी घटने की वजह से उत्पादों की मांग भी गायब हो गई है। सर्वे में शामिल 70 प्रतिशत कंपनियों ने कहा है कि उन्हें कोविड-19 पूर्व के मांग स्तर पर पहुंचने के लिए करीब 18 महीने का समय लगेगा। इसी तरह 22 अप्रैल को रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया की मौद्रिक नीति समिति ने कहा था कि चालू वित्त वर्ष 2021-22 में कोरोना की दूसरी लहर भारतीय अर्थव्यवस्था की रिकवरी की राह में बड़ी बाधा बन गई है।देश की एक अन्य जानी-मानी सर्वे एजेंसी ह्यफिच सॉल्यूशंसह्ण ने देश की चालू वित्त वर्ष की आर्थिक वृद्धि के अपने पहले के अनुमान को संशोधित कर 4.9 फीसदी कर दिया। ह्यफिचह्ण का पहले का अनुमान 5.1 फीसदी रहने का था। ह्यफिचह्ण का कहना है कि कोरोना वायरस के प्रभाव से आपूर्ति शृंखला गड़बड़ाने और घरेलू मांग कमजोर पड़ने से उसने वृद्धि का अनुमान घटाया है।तस्वीर का दूसरा रुख भी कम भयावह नहीं है। भारतीय कामगारों की काम करने की अधिकतम अवधि 7 से 8 घंटे की होती है। वर्क फ्रॉम होम में तो काम की अवधि का कोई पैमाना ही निर्धारित नहीं है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों या कारपोरेट सेक्टर में काम करने वाले 79.8% लोगों की शिकायत है कि उन्हें 17 से 18 घंटे या विशेष परिस्थितियों में इससे भी अधिक अवधि तक कार्य करना पड़ता है। 63 फीसदी लोगों का कहना है कि वर्क फ्रॉम होम के नाम पर उनकी स्थिति बंधक जैसी हो गई है। कामगारों के काम की अवधि को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कई बार आवाज उठाई जा चुकी है। कई देश पहले से ही अपने कामगारों को काम की निर्धारित अवधि का अधिकार प्रदान कर चुके हैं। भारत जैसे देश में इस दिशा में तत्काल कदम उठाने की जरूरत सबसे अधिक है।
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