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असम में इक्कीस साबित हुए बिस्वा

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अरुण नैथानी
असम में सत्ता विरोधी लहर को टाल कर और कांग्रेस गठबंधन को हराकर बड़ी जीत दर्ज करने वाली भाजपा को इस मुकाम तक पहुंचाने वाले सूत्रधार हिम्मत वाले हिमंत बिस्वा सरमा ही थे। हालांकि, पिछले चुनाव में उन्होंने पार्टी की जीत में बड़ी भूमिका निभाई थी, लेकिन उन्हें पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा के विस्तार का जिम्मा दे दिया गया, जिसकी वजह थी कि उन्हें पूर्वोत्तर के राज्यों की गहरी समझ है। उन्होंने कई अन्य राज्य भाजपा की झोली में डाले भी हैं। मगर इस बार दुविधा इस बात की थी कि क्या सबार्नंद सोनोवाल उनके लिये गद्दी छोड़ने के लिये सहर्ष तैयार होंगे या पार्टी में असंतोष के सुर उभरेंगे। कई दिन की माथापच्ची के बाद आखिरकार केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप और विधायकों की सहमति के बाद हिमंत बिस्वा सरमा की असम में ताजपोशी हो ही गई। अब कयास लगाये जा रहे हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री सबार्नंद सोनोवाल को केंद्र सरकार में शामिल किया जा सकता है। दरअसल, वर्ष 2016 में असम के मुख्यमंत्री बनने से पहले सबार्नंद सोनोवाल मोदी सरकार में खेल मंत्री थे।पूर्वोत्तर में भाजपा के खेवनहार हिमंत बिस्वा की लोकप्रियता का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वे असम की जालुकबारी विधानसभा सीट से लगातार पांच बार जीत चुके हैं। कभी कांग्रेस के विश्वासपात्र नेताओं में गिने जाने वाले हिमंत बिस्वा ने कालांतर पार्टी नेतृत्व से खटपट हो जाने के बाद 2014 में पार्टी छोड़ दी थी। उन्होंने वर्ष 2015 में भाजपा ज्वाइन कर ली थी। उन्होंने राज्य में कई बड़ी जिम्मदारी निभायी। वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव, 2019 के लोकसभा चुनाव व वर्तमान जीत के अलावा कोरोना के हालात संभालने में उन्होंने निर्णायक भूमिका निभाई। हिमंत बिस्वा सरमा का प्रभावी चुनाव अभियान भाजपा की जीत की बड़ी वजह बताया जाता है। जालुकबारी विधानसभा सीट से लगातार पांचवीं बार और एक लाख से अधिक वोटों से जीतने वाले बिस्वा को पूर्वोत्तर में कमल खिलाने का श्रेय दिया जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद उनके राजनीतिक कौशल और पूर्वोत्तर में पकड़ के चलते उन्हें पार्टी ने नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस का अध्यक्ष बनाया था। फिर उन्होंने पूर्वोत्तर के कई राज्यों में भाजपा को सत्ता के शिखर तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।बहरहाल, अब ऐतिहासिक जीत के बाद राज्य के मुख्यमंत्री को लेकर लगाये जा रहे कयासों के बाद भाजपा ने गुत्थी सुलझा ली है। हालांकि, इस बार पार्टी ने चुनाव को गुटबाजी से बचाने के लिये मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया था। छात्र राजनीति से आये हिमंत बिस्वा सरमा ने कुछ समय हाईकोर्ट में वकालत भी की थी। उनके राजनीतिक जीवन की असली शुरूआत वर्ष 2001 में हुई जब उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर जालुकबारी से पहली बार विधानसभा का चुनाव जीता। सरमा के रणनीतिक कौशल की कायल कांग्रेस पार्टी भी रही है, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के टकराव के चलते उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी।एक फरवरी, 1969 को असम के जोरहाट में साहित्यकार कैलाशनाथ सरमा के घर जन्मे हिमंत बिस्वा सरमा को सामाजिक सक्रियता वाला परिवेश मिला। उनकी मां भी सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं में सक्रिय रही हैं। कामरूप के एक स्कूल से पढ़ाई करने वाले सरमा ने बाद में कॉटन कॉलेज गुवाहाटी में आगे की पढ़ाई की। राजनीतिक विज्ञान उनका प्रिय विषय था, जिसमें उन्होंने स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। कानून की पढ़ाई भी उन्होंने की। कालांतर राजनीति में सक्रिय रहते हुए पीएचडी की डिग्री भी हासिल कर ली। दरअसल राजनीति के संस्कार उनमें छात्र जीवन से ही थे। कॉटन कालेज में पढ़ाई के दौरान वे छात्र संघ के महासचिव चुने गये। कहा जाता है कि भले ही उनकी राजनीतिक पढ़ाई असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के संरक्षण में हुई, लेकिन राजनीति में उन्हें लाने का श्रेय पूर्व मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया को दिया जाता है। पहली बार वे 1996 में विधानसभा चुनाव लड़े लेकिन असम आंदोलन के नेता भुगु फुकन से चुनाव हार गये। लेकिन वर्ष 2001 में उन्होंने अपनी हार का बदला ले लिया। बाद में वे गोगोई सरकार में मंत्री भी बने। उनकी गिनती पार्टी के बड़े नेताओं में होती थी। लेकिन अपने राजनीतिक गुरु तरुण गोगोई से मतभेदों के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी।साल 2014 में कांग्रेस पार्टी का साथ छोड़ने के बाद उन्होंने तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के आवास पर बीजेपी का हाथ थाम लिया। साल 2016 में असम में चुनाव होने वाले थे, तो उन्हें पार्टी का संयोजक बनाकर मैदान में उतारा गया। बीजेपी ने चुनाव जीत लिया लेकिन हिमंत सीएम नहीं बने। तब केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता सवार्नंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री बनाया गया। लगातार चौथी बार जालुकबरी से जीतने वाले सरमा इस सरकार में कैबिनेट मंत्री बने।साल 2016 में असम में पहली बार कमल खिलाने के बाद इस बार भी हिमंत के ऊपर ही सत्ता में वापसी की जिम्मेदारी थी। प्रदेश में स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए उन्होंने जनहित में कई अच्छे काम किए थे। माना जाता है कि यह हिमंत बिस्वा सरमा का ही जादू है कि राज्य के लोगों ने लगातार दूसरी बार बीजेपी को सत्ता सौंप दी। ऐसे में मुख्यमंत्री पद पर उनकी दावेदारी भी काफी मजबूत हुई।

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